भागलपुर: मैं तिलकामांझी. आज कुछ ज्यादा ही खुश हूं. आखिर खुद के नाम से जुड़े संस्थान (तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय) के जन्मदिन मनाने की खुशी किसे नहीं होती होगी. आज एक से बढ़ कर एक विद्वान मेरे उन दिनों की यादें ताजा करेंगे, जब देश अंगरेजों के हवाले था और लोग इससे जान छुड़ाने के लिए सारी ताकत झोंक चुके थे. लेकिन थोड़ा दुखी भी हूं कि स्वतंत्रता सेनानी के अलावा मेरे बारे में लोग बहुत कुछ नहीं जानते. भागलपुर विश्वविद्यालय से खुद के नाम जुड़े 22 साल बीत चुके (1992 में भागलपुर विश्वविद्यालय से तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय हुआ था नाम), पर आज भी युवा पीढ़ी भी मुझसे अनजान है. खास कर भागलपुर विश्वविद्यालय के अधिकतर छात्र-छात्रएं मेरे में बारे में कुछ नहीं जानते. आखिर युवा पीढ़ी मुङो क्यों जाने. उन्हें मेरे बारे में बताता ही कौन है. मुङो बेहद खुशी होती है कि जिस भागलपुर विश्वविद्यालय के साथ मेरा नाम जोड़ा गया, उसमें हर साल लाखों युवा पीढ़ी ज्ञान हासिल कर रही है. लेकिन मुङो दुख इस बात का होता है कि विश्वविद्यालय में पढ़ाये जानेवाले किसी भी पुस्तक में मुङो शामिल नहीं किया गया है.
Source: Bhagalpur News
तिलकामांझी को अपनाने में संकोच क्यों
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