आदरणीय सम्मानित मंत्री महोदया श्री मती दीपिका पाण्डेय सिंह जी नेॅ अंगिका भाषा मेॅ विधानसभा मेॅ शपथग्रहणलेलकै।हिनकां ढेरी सीनी बधाय आरो शुभकामना।डॉ. प्रदीप प्रभातमहासचिव, अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच झारखण्ड प्रदेश।
https://youtu.be/9mdtznVn3_wअंगिका साहित्य करो इतिहास | Angika Sahitya Kero Itihaas – डॉ. अमरेंद्र, डॉ. डोमन साहु ‘समीर’ , डॉ. तेजनारायण कुशवाहा | Dr. Amarendra, Dr. Doman Sahu Sameer, Dr. Tejnarayan Kushwaha – Angika Books
समीक्षा : “उपन्यास ‘गेना लैया’ : डॉक्टर अमरेंद्र” – अरुण कुमार पासवान
उपन्यास 'गेना लैया' : डॉक्टर अमरेंद्र++++++++++++++++++++++जिसे आप जी जान से चाहते हैं,उसे किसी भी हाल में छोड़ना नहीं चाहते हैं,पर छोड़ना आप की विवशता हो जाती है,वह आप के दिल के बहुत पास रहने लगता है।फिर जब भी सुयोग आता है आप अपने अंतराल की सारी कसर पूरी करते देखे जा सकते हैं। गांव और ग्रामीण संस्कृति के साथ मेरा भी ऐसा ही संबंध है।तो जब गांव पहुंचने का अवसर मिलता है,ग्रामीण संस्कृति की बात होने लगती है,ग्रामीण बोलचाल,शब्द या नाम सुनाई या दिखाई दे जाता है,मन करता है उसी में डूब जाऊं,और जो खोया है उसे जितना पा सकता हूं पा लूं।गेना नाम पहले भी सुना है,डॉक्टर अमरेंद्र जी के 'गेना' के पन्नों से गुज़रा भी हूं,(अच्छा है कि अब उसमें से कुछ भु याद नहीं)पर जब इसका पी डी एफ एक नए प्रकाशन के रूप में अमरेंद्र जी से ही प्राप्त हुआ तो उसमें तैरने, उतराने को जी करता है,आराम से धीरे धीरे।(यह मेरे लिए इस समय एक नई कहानी है,जिसे पढ़ते हुए,दुहराने जैसा कोई अहसास नहीं है,तो जिज्ञासा रत्ती भर भी कम न होगी।)नौकरी को मैं सदा मजबूरी मानता रहा हूं,रोटी के जुगाङ के लिए बस।यदि बिना नौकरी रोटी,कपड़ा …
निधन: अंगिका के सिरमौर कवि श्री हीरा प्रसाद “हरेंद्र” नहीं रहे
अंगिका भाषा को पहचान दिलाने वाले कवि श्री हीरा प्रसाद हरेंद्र (74) का १६ - मई २०२४ दोपहर, सुलतानगंज में निधन हो गया. वह कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. वह अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच के राष्ट्रीय महामंत्री थे. श्री हीरा प्रसाद हरेंद्र अंगिका के सिरमौर कवि थे. अंगिका व हिंदी साहित्य में इनका अमूल्य योगदान है. अंगिका भाषा को समर्पित हीरा बाबू का जन्म 6 सितंबर 1950 को सुलतानगंज के कटहरा ग्राम में हुआ था. वह सेवा निवृत प्रधानाचार्य थे.
अपनी लेखनी से अंगिका में कई खंड काव्य, महाकाव्य व प्रबंध काव्य की रचना की. इनका काव्य खंड पुस्तक उत्तंग हमरो अंग और अंगिका महाकाव्य तिलकामांझी, टीएमबीयू में एमए के पाठ्यक्रम में छात्र पढ़ रहे है. अंगिका में गजल संग्रह, हिंदी संस्मरण, हिंदी काव्य संकलन, हिंदी एकांकी, लोक गाथा पर उपन्यास कुंडलियां व दोहे लिखे. कई सम्मान व पुरस्कार मिले. उन्हें आठ अप्रैल को अजगैवीनाथ साहित्य मंच सुलतानगंज की ओर से उमानाथ पाठक साहित्य स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया था. उनके निधन पर शहर के शिक्षाविद व साहित्कारों में शोक की लहर है. सुलतानगंज मुक्तिध…
केन्द्र को कौन बताए कि अंगिका व्युत्पन्न भाषा नहीं है – डॉ. अमरेन्द्र
पिया नथनी मंगाय दा बिहार से | अर्पिता चौधरी | अंगिका लोक गीत | Piya Nathunai Mangaay Da Bihar Se | Arpita Choudhary | Angika Lok Geet
पिया नथुनी मंगाय दा बिहार से, बौंसी बाज़ार से अंगिका झूमर लोक गीत गायिका : अर्पिता चौधरी गीतकार : रूपम झा हारमोनियम - निरंजन शर्मा ढोलक: बिकास
https://www.youtube.com/watch?v=fUMCoY_8kP8इंदुबाला | Indubala
जाने माने साहित्यकार इंदुबाला का जन्म भागलपुर में १ दिसंबर १९५६ को हुआ. प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत इन्होने हिंदी में एम.ए. (हिन्दी), एम.ए. (राजनीति शास्त्र), और फिर एल.एल.बी. की पढ़ाई की और बाद में हिंदी विभाग में शिक्षिका के तौर पर काम किया. ये प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. शिवचंद्र झा ‘आंगिरस’ की पत्नी हैं. इन्होने हिंदी और अंगिका भाषा में कई पुस्तकें लिखीं ।
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डॉ. सरिता सुहावनी | Dr. Sarita Suhawani
डॉ. भूतनाथ तिवारी | Dr. Bhootnath Tiwari
बैकुंठ बिहारी | Baikunth Bihari
अनूप लाल मंडल | Anup Lal Mandal
प्रारंभिक जीवन के तैंतीस वर्षों तक अध्ययन और जीविकोपार्जन की दिशा में टैढ़ी मेढ़ी पगडंडियों से गुजरने के बाद भागवती प्रेरणा के फलस्वरूप अप्रत्यासिक रूप से भारती के अर्चना की ओर प्रवृत्त-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी असदम्य उत्साह एवं अटूट निष्ठा से साहित्य साध्ना, सन अदम्य उत्साह एवं अटूट निष्ठा से साहित्य साधना,
सन 1921 ई. में प्रथम कृति निर्वासिता का प्रकाशन-अब तक कुल 18 उपन्यास प्राकाशित -मीमांसा नामक उपन्यास का ‘बहुरानी’ नाम से चल चित्रीकरण--रक्त और रंग’ नामक उपन्यास बिहार सरकार द्वारा पुरस्कृत ।
व्यक्तिगत सत्याग्रह में कारावास-असाध्य बात व्याध् िके साथ कारा मुक्ति। वह व्याध् ियथास्थान अब भी अचला राष्ट्रभाषा परिषद् के प्रारंभिक काल से सन 1963 तक प्राकशनाधिकारी के यप में सरकारी सेवा-कैवल्यधम आश्रम, महर्षि रमण आश्रम और विशेषतः श्री अरविन्द आश्रम में अध्यात्मिक जीवन की सुखानुभूति-साहित्य सृजन ही जीवन यात्रा का पाथेय।
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