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बुतरू कs, पढाय देलकै, बड़ा बनाय देलकै।
जिनगी आपनो, इहै मs पूरा, बिताय देलकै।।
जे कमाइने छेलै, लगी-हारी कs, दिन-रात।
सब्भै, बुतरू के ममता मs, लुटाय देलकै।।
हमरs नुनू , सब्भै संs छै, दू फलांग आगू।
जाने, भगमान, कोन पुन्य के, फsल देलकै।।
बड़ा होय, बुतरू, करतै, बुढ़ाढ़ी मs सेवा।
इहै सोची-सोची, जवानी, बुढ़ाय देलकै।।
कत्तो कहै, लोग सिनी, होकरा बारे मेँs।
बात, दुनो जीव, हवा में, उड़ाय देलकै।।
बड़ा होथैं, जानें की होलै, भूली गेलै हमरा।
आरो, सब लगाव भी, गंगा मs, बहाय देलकै।।
टुकुर-टुकुर ताकै, दिनभर, द्वारी दन्ने।
बेरा डुबथैंह, पल्ला, भिडकाय देलकै।।
कमाय के इन्हीं, की देथौं, माय बाप कs।
उलटा, पेंशन पs नज़र, गराय देलकै ।।
भाँगलो देहs मs, जान, कैंहैं अखनिहों छै।
इहे जानै, बुतरु, ऐला दिन, फ़ोन घुमाय देलकै।।
~ किसलय “कोमल”
दिनांक : १३-दिसंबर-२०२३