उपन्यास 'गेना लैया' : डॉक्टर अमरेंद्र++++++++++++++++++++++जिसे आप जी जान से चाहते हैं,उसे किसी भी हाल में छोड़ना नहीं चाहते हैं,पर छोड़ना आप की विवशता हो जाती है,वह आप के दिल के बहुत पास रहने लगता है।फिर जब भी सुयोग आता है आप अपने अंतराल की सारी कसर पूरी करते देखे जा सकते हैं। गांव और ग्रामीण संस्कृति के साथ मेरा भी ऐसा ही संबंध है।तो जब गांव पहुंचने का अवसर मिलता है,ग्रामीण संस्कृति की बात होने लगती है,ग्रामीण बोलचाल,शब्द या नाम सुनाई या दिखाई दे जाता है,मन करता है उसी में डूब जाऊं,और जो खोया है उसे जितना पा सकता हूं पा लूं।गेना नाम पहले भी सुना है,डॉक्टर अमरेंद्र जी के 'गेना' के पन्नों से गुज़रा भी हूं,(अच्छा है कि अब उसमें से कुछ भु याद नहीं)पर जब इसका पी डी एफ एक नए प्रकाशन के रूप में अमरेंद्र जी से ही प्राप्त हुआ तो उसमें तैरने, उतराने को जी करता है,आराम से धीरे धीरे।(यह मेरे लिए इस समय एक नई कहानी है,जिसे पढ़ते हुए,दुहराने जैसा कोई अहसास नहीं है,तो जिज्ञासा रत्ती भर भी कम न होगी।)नौकरी को मैं सदा मजबूरी मानता रहा हूं,रोटी के जुगाङ के लिए बस।यदि बिना नौकरी रोटी,कपड़ा …