हिन्दी और अंगिका में विपुल साहित्य के सर्जक डॉ. अमरेन्द्र का जन्म, बिहार के पुराने जिले भागलपुर के बाँका अनुमंडल (अब जिला) के रजौन थानान्तर्गत, पौराणिक नदी चानन नदी के पूर्वी छोर पर बसा रुपसा (रूपसार) गाँव में पाँच जनवरी उन्नीस सौ उनचास ई. में हुआ । अपने पिता के बाहरी और आन्तरिक व्यक्तित्व से संपन्न, इन्होंने आरंभ में तो सवैया और कवित्त छंदों में काव्य-सर्जना आरंभ की, लेकिन बाद में उर्दू शैली से प्रभावित होकर देवनागरी में भरपूर ग़ज़लें कहीं, और नज़्में भी । यह क्रम काँग्रेस-काल में आपात-काल की घोषणा से लेकर सन दो हजार पाँच ई. के आसपास तक जारी रहा । बाद में इन्होंने अपनी सृजनशीलता के वेग को, जनपदीय आन्दोलन से प्रभावित होकर, अपनी मातृभाषा के संपूर्ण विकास की ओर मोड़ दिया और इस तरह अपने सर्जक व्यक्तित्व को राष्ट्रभाषा के साथ-साथ मातृभाषा की सेवा में समर्पित कर दिया, जो आज भी उसी रूप में अडिग है ।
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