पीवी उल्फत के जाम, मने-मन सोचै छी,सब आशिक छै बदनाम, मने-मन सोचै छी ।
फूहड़ घासोॅ सें बाग-बगीचा छै भरलोॅ,केना खिलतै गुलफाम, मने-मन सोचै छी ।
घर-घर होलै परचार विदेशी चीजोॅ के,अब होतै की अंजाम, मने-मन सोचै छी ।
कम्बल ओढ़ी जब घी पीवी मोटैलोॅ छोॅ,लागै छोॅ सब सद्दाम, मने-मन सोचै छी ।
बेटी बनलै अभिशाप, दहेजोॅ के चलतें,बेटी सें विधाता बाम, मने-मन सोचै छी ।
छै माल-मवेशी भरलोॅ सड़कोॅ पर पड़लोॅगीद्धो गेलै सुरधाम, मने-मन सोचै छी ।
चन्दन के मोल कहाँ बूझै छै सब ‘हीरा’बेचै लकड़ी के दाम, मने-मन सोचै छी ।