पीवी उल्फत के जाम – अंगिका कविता – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – Pivi Ulfat Ke Jaam – Angika Poem – Heera Prasad Harendra

पीवी उल्फत के जाम, मने-मन सोचै छी,सब आशिक छै बदनाम, मने-मन सोचै छी ।

फूहड़ घासोॅ सें बाग-बगीचा छै भरलोॅ,केना खिलतै गुलफाम, मने-मन सोचै छी ।

घर-घर होलै परचार विदेशी चीजोॅ के,अब होतै की अंजाम, मने-मन सोचै छी ।

कम्बल ओढ़ी जब घी पीवी मोटैलोॅ छोॅ,लागै छोॅ सब सद्दाम, मने-मन सोचै छी ।

बेटी बनलै अभिशाप, दहेजोॅ के चलतें,बेटी सें विधाता बाम, मने-मन सोचै छी ।

छै माल-मवेशी भरलोॅ सड़कोॅ पर पड़लोॅगीद्धो गेलै सुरधाम, मने-मन सोचै छी ।

चन्दन के मोल कहाँ बूझै छै सब ‘हीरा’बेचै लकड़ी के दाम, मने-मन सोचै छी ।

Read more about पीवी उल्फत के जाम – अंगिका कविता – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – Pivi Ulfat Ke Jaam – Angika Poem – Heera Prasad Harendra
  • 0