महिलाओं को सिखा रहा सिक्की कला, जर्मनी से आई है इसकी डिमांड;

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बिहार कृषि विश्वविद्यालय पुआल, खर-पतवार, घास, गेहूं, धान व मूंग की भूसी के अलावा फसल के अन्य अवशेषों से कलाकृति बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है। जिले व आसपास की 30 महिलाओं को जहानाबाद केवीके की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शोभा रानी ने इस सिक्की कला का प्रशिक्षण दिया है। कार्यशाला के दाैरान प्रशिक्षुओं द्वारा बनाई गई कलाकृति को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी भेजा जाएगा।धान के भूसे से बनाई गयी कलाकृति सबसे बेहतर मानी जाती है। शुक्रवार काे प्रशिक्षण के दाैरान बीएयू के कुलपति डाॅ. डीआर सिंह ने कहा कि जिन 30 महिलाओं को हमने प्रशिक्षित किया है, वे हमारी राजदूत बनेंगी। वीसी से प्रशिक्षु महिलाओं से कहा कि आप बेहतर से बेहतर कलाकृति बनाएं। बीएयू उसे खरीदने के लिए तैयार है। उन्हाेंने प्रशिक्षुओं को प्रमाण पत्र भी दिया।कला से 25 हजार हर माह हाे सकती है आमदनी प्रशिक्षण की संचालिका व बीएयू की वैज्ञानिक अनीता कुमारी ने बताया कि पराली से हैंगिंग, पोट्रेट, सीनरी व आभूषण आदि बनाए जा सकते हैं। जर्मनी से भी इसकी डिमांड आयी है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में आए शाहकुंड के दिलीप कुमार पिछले दस वर्षों से पुआल कला पर काम कर रहे हैं। वे स्कूल व कालेजाें में प्रशिक्षण दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति इस कला को सीखकर हर महीने 25 हजार रुपए तक कमा सकता है। भागलपुर में पुआल से बनी एक सीनरी हाल में पैंतीस हजार रुपये में बेची गयी है। उत्पाद जर्मनी भी भेजा गया है।