मेले की संस्कृति का प्राचीन इतिहास रहा है:धर्म संस्कृति और परंपरा का गौरवशाली बौंसी मेले में टूट जाती है मजहबों की दीवारें;

Click to rate this post!
[Total: 0 Average: 0]

पूर्वी बिहार का सुप्रसिद्ध मंदार महोत्सव तो संपन्न हो गया लेकिन पारंपरिक और संस्कृति का उत्सव एवं प्राचीन मेला अभी जारी है, जो इन दिनों परवान पर है और मेले का मनोरंजन के खिलौनों से गुलजार है। लोक संस्कृति परंपरा सद्भाव और गौरवशाली विरासत का यह मेला कई मायनों में लोगों का मनोरंजन कर रही है। लोग मेले में सैर-सपाटे कर आनंद प्राप्त कर रहे हैं।

मेले की संस्कृति का प्राचीन और ग्रामीण स्वरूप अब भी बरकरार है, किसानों के लिए कुदाली, खेती के अन्य सामान, घरेलू महिलाओं के लिए चकला बेलना मसाला पीसने का सामान सहित अन्य घरेलू सामान की दुकान गुलजार हैं। वहीं बच्चों के लिए हस्त शिल्प से तैयार छोटे-छोटे खिलौने, बांसुरी, मिट्टी के हाथी घोड़ा की खूब बिक्री हो रही है।

मेले में संस्कृति का उत्सव खेल तमाशा आदि लोगों का खूब मनोरंजन कर रहा है। वहीं पुरानी परंपरा के अनुसार धर्म आस्था और पूजा-पाठ का दौर भी इस मेले के आयोजन का विशेष स्वरुप है। मंदार में स्नान और सपाधर्म के लोगों द्वारा विधिपूर्वक पूजा अर्चना मंदिर के दर्शन और पर्वत के आरोहण का दौर भी जारी है।

अमीर गरीब विभिन्न भाषा-भाषी के लोग दूसरे राज्यों से आए श्रद्धालु, बच्चे, बुजुर्ग, नौजवान तथा विभिन्न भाषा-भाषी और आदिवासी जनजाति सभी लोग इस मेले में आपस के विभिन्न विचारधाराओं और संस्कृति बेपरवाह एक साथ सद्भाव पुण्य वातावरण में एक-दूसरे के मन का ख्याल रखते हुए मेले के आनंद में डूबे हुए हैं।

झूला, सर्कस, खेल तमाशा और अन्य मनोरंजन के सामान ने एक और मेले की रौनक को चार चांद लगा दिया। घूमने आए सैलानियों के आनंद और मनोरंजन का सबसे बड़ा स्थान बन चुका है। कुमार के मुताबिक अब तक 50 हजार से ज्यादा श्रद्धालु इस मेले और महोत्सव का भ्रमण कर चुके हैं।