काेराेनाकाल के बाद जिले में बहरेपन के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। मेडिकल काॅलेज अस्पताल के ईएनटी विभाग में हर माह सिर्फ बहरेपन के 100 मरीजाें की सर्जरी हाे रही है। ओपीडी में हर दिन 50 से 60 मरीजाें की जांच में 10 प्रतिशत में कम सुनाई देने की शिकायत मिल रही है। यहां तैनात असिस्टेंट प्राेफेसर डाॅ. धर्मेंद्र कुमार बताते हैं कि पांच साल से ज्यादा उम्र के बच्चाें में बहरेपन के अलावा सबकुछ सुनने के बाद भी बाताें काे नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति बढ़ी है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि काेराेनाकाल में ऑनलाइन क्लास के दाैरान बच्चे पांच से छह घंटे तक लगातार कान में इयरफाेन लगाकर तेज आवाज में बातचीत सुनते थे। इसका इलाज यही है कि बच्चाें काे माेबाइल से दूर रखना हाेगा। हालांकि धूल, धुआं, गाड़ियाें के हाॅर्न, तेज आवाज में म्यूजिक सिस्टम के भी असर वाले मरीज अा रहे हैं।
बच्चाें काे लिटाकर दूध पिलाने से भी कान में हाेता है संक्रमण
मेडिकल काॅलेज अस्पताल में कम सुनने की समस्या काे लेकर आने वालाें में युवा भी शामिल हैं। बड़ी वजह माेबाइल फाेन से लगतार गाना सुनना व ईयरफाेन का इस्तेमाल करना है। ईएनटी स्पेशलिस्ट डाॅ. एसपी सिंह ने बताया कि बच्चाें में लगातार सर्दी-खांसी हाेने से कान का पर्दा फटने की शिकायत आती है।
बच्चाें काे दूध पिलाने के दाैरान लिटाने से कान की नली में दूध जाकर संक्रमण पैदा करता है। इससे बाद में कान का पर्दा फट जाता है। गैर संचारी रोग पदाधिकारी डाॅ. पंकज कुमार मनस्वी ने बताया कि विश्व श्रवण दिवस के माैके पर जागरूकता के लिए रैली निकाली जाएगी। ऑडियाेलाॅजिस्ट से कान की बीमारियाें की जांच करायी जाती है। लाेगाें काे भी जागरूक करेंगे।
बहरेपन के ये हैं मुख्य कारण
कान में संक्रमण
कान की नसें कमजाेर हाेना
ईयरफाेन का लगातार इस्तेमाल
कान में चाेट लगना
तेज आवाज में म्यूजिक सिस्टम सुनना
शाेरगुल वाले इलाके में ज्यादा समय बिताना
लगातार सर्दी-खांसी व एलर्जी का रहना