एक तरफ जहां कुत्ते के ख़ौफ़ से लोग उसको मारते हैं। तो वहीं भागलपुर के मशाकचक के रहने वाले सौरभ पेशे से शिक्षक हैं। जो करीब 35 वर्षों से लावारिस कुत्ते को शरण दे हैं। सौरभ खुद ट्यूशन पढ़ाते हैं। उससे जो भी आमदनी होती है। उसका 70 प्रतिशत हिस्सा कुत्ते पर खर्च कर देते हैं। शिक्षक को अगर सड़क पर बीमार कुत्ता दिखता है तो उसे घर लाकर और उसे पालते हैं। यंहा तक कि सभी कुत्ते के लिए रूम व बेड सभी चीजों की व्यवस्था की गई है। सौरभ को पुत्र-पुत्री नहीं है, इन्हीं को अपना संतान मानते हैं।
35 वर्षों से कर रहे हैं सेवा
सौरभ अभी 56 वर्ष के हो चुके हैं। अभी तक इन्होंने करीब 200 कुत्ते का पालन पोषण किया। जब कुत्ते का देहांत होता है तो उसे भी दफन किया जाता है। 1987 से कुत्ते को पाल रहे हैं। दरअसल एक दिन सौरभ जब बाजार से अपने घर जा रहा था, इसी दौरान उसने बाजार में एक कुत्ते को दर्द से कराहते हुए देखा। वहां से कई लोग गुजरे पर किसी ने उसे नहीं उठाया। सौरभ की नजर पड़ी उसने उसे उठाकर अपने घर लाया और उसका इलाज कराया। उसी दिन से सौरभ को जहां भी बीमार कुत्ता दिखता उसे घर ले आता था। उसकी देखभाल करता था। धीरे धीरे उनको ये अच्छा लगने लगा। अभी भी घर में 25 कुत्ते हैं।
कुत्ते के भरण पोषण के लिए लोग भी आगे आते हैं
शिक्षक ने बताया कि कुत्ते के भरण पोषण के लिए लोग भी मदद करते हैं। कोई चावल तो कोई दूध भी दे देते हैं। सौरभ की बहन कुत्ते के परवरिश के लिए रुपए देती है। उन्होंने बताया कि घर में कोई नहीं रहने के कारण उनको खुद ही सभी के लिए खाना बनाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि कभी दूध भात तो कभी भात सब्जी खिलाते हैं। ठंड से बचाव के लिए भी व्यवस्था की गई। कुत्ते अपने मालिक के आहट को पहचान लेते हैं। सौरभ के घर आते ही सभी कुत्ते लिपट जाते हैं। उन्होंने बताया कि इसके बिना दुनिया अधूरी है। दोनों एक दूसरे के दर्द को अच्छी तरह समझते हैं।