बिहार व झारखंड के लिए चलती हैं 260 बसें:किराया से सालाना 3.60 करोड़ की कमाई, फिर भी 9 साल से कागजों पर दौड़ रहा बस स्टैंड;

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शहर में पिछले 9 साल से बिना स्टैंड के ही बिहार और झारखंड के अलग-अलग जिलों के लिए बसें चल रही हैं। लेकिन एक बस स्टैंड नहीं बन सका है। शहर के काेयला डिपाे स्थित डिक्शन माेड़ और जीरो माइल से करीब 260 बसें चल रही हैं। रोजाना औसतन 10 हजार लोग सफर कर रहे हैं। राेजाना 10 लाख रुपए किराये की वसूली की जा रही है। यानी, सालाना 3.60 करोड़ रुपये आ रहे हैं। लेकिन बस स्टैंड नहीं होने से यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

लोगों को पेयजल, शौचालय, सुरक्षा से लेकर बैठने तक में परेशानी हाेती हैं। हालांकि बस स्टैंड बनाने के लिए पिछले 9 साल से कागजी प्रक्रिया चल रही है। पहले सात साल तक जमीन नहीं मिली। दो साल पहले जमीन मिली। जगदीशपुर के रक्शाडीह में बाइपास के बगल में 1.75 एकड़ सरकारी जमीन मिली। लेकिन, वह हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में आने से नगर निगम को उसे विकसित करने में तकनीकी बाधा आई। अब जबकि वह क्षेत्र प्लानिंग एरिया में आ गया है, तो उसके डेवलपमेंट के प्रस्ताव की फाइल नगर विकास एवं आवास विभाग के पास अटकी है।

सड़काें पर जहां-तहां खड़ी रहती हैं बसें, इसलिए अक्सर लगता है जाम

बस स्टैंड के अभाव में जहां यात्रियों को परेशानी होती है, वहीं शहर में यातायात की समस्या भी बनी रहती है। कारण कि स्टैंड के अभाव में जीरो माइल से हवाई अड्डा होते हुए जवारीपुर से तिलकामांझी चौक तक बसें खड़ी रहती हैं। जबकि डिक्शन मोड़ से उल्टा पुल पर भी बसें खड़ी रहती हैं व लोगों को चढ़ाया-उतारा जाता है। इससे जाम के हालात बनते हैं। कुछ माह पहले ट्रैफिक डीएसपी ने कमिश्नर और डीएम को वहां से बस स्टैंड हटाकर शहर से बाहर करने के लिए पत्र के माध्यम से अनुरोध किया था। लेकिन इस दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी।

बाहर से आने वाले यात्रियों को पता ही नहीं चलता, बस कहां रुकेगी

कोयला डिपो स्थित डिक्शन माेड़ प्राइवेट बस स्टैंड से रोज 160 बसें चलती हैं। प्रतिदिन छह लाख रुपए तक किराया की वसूली की जाती है। स्टैंड संचालक शशि यादव ने बताया कि सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। जबकि जीरो माइल बस स्टैंड पूरी तरह से अवैध है। राेज करीब 100 बसें खुलती हैं। खाद्यान्न व्यवसायी संघ के उपाध्यक्ष अभिषेक जैन ने बताया कि आसपास के जिलाे से आनेवाले व्यवसायी काे दिक्कत हाेती है। उनलाेगाें काे पता ही नहीं चलता है कि बस कहां रुकेगी, ऐसे में उनलाेगाें काे आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है।

जानिए, बस स्टैंड के लिए जिला प्रशासन ने अब तक क्या-क्या प्रयास किए हैं

बस स्टैंड के लिए 2014 में पहल हुई। उस समय बुडकाे को 395.50 लाख रुपए मिले। टेंडर निकाला गया। लेकिन जमीन नहीं मिलने से मामला ठंडा पड़ गया। दोबारा 2016 में तत्कालीन कमिश्नर अजय चौधरी की पहल पर स्मार्ट सिटी से तिलकामांझी स्थित सरकारी बस स्टैंड में आधुनिक बस स्टैंड बनाने की योजना बनी। बिहार राज्य पथ परिवहन निगम से एनओसी मांगा गया। लेकिन नहीं मिला। इसके बाद बाइपास के बगल में 1.75 एकड़ जमीन खोजी गई। वहां जब निगम ने स्टैंड बनाने की पहल की, तो ग्रामीण क्षेत्र में होने और निगम के दायरे से बाहर होने से मामला फिर अटक गया। अब प्लानिंग एरिया में वह हिस्सा आ गया है, लेकिन फाइल विभाग के पास धूल फांक रही है।

पांच एकड़ जमीन पर बनेगा बस स्टैंड, अप्रैल से हाेगी पहल

पहले नगर विकास विभाग काे प्रस्ताव भेजा था। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के कारण मामला फंसा रहा। अब प्लानिंग एरिया में वह हिस्सा आ गया है। अभी 1.75 एकड़ सरकारी जमीन है। अब वहां 5 एकड़ जमीन पर स्टैंड बनाने की याेजना है। इसके लिए कुछ निजी जमीन काे लीज भी लिया जा सकता है। इसके लिए अप्रैल से पहल तेज हाेगी। – सुब्रत कुमार सेन, डीएम