अंगिका भाषा को पहचान दिलाने वाले कवि श्री हीरा प्रसाद हरेंद्र (74) का १६ – मई २०२४ दोपहर, सुलतानगंज में निधन हो गया. वह कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. वह अखिल भारतीय अंगिका साहित्य कला मंच के राष्ट्रीय महामंत्री थे. श्री हीरा प्रसाद हरेंद्र अंगिका के सिरमौर कवि थे. अंगिका व हिंदी साहित्य में इनका अमूल्य योगदान है. अंगिका भाषा को समर्पित हीरा बाबू का जन्म 6 सितंबर 1950 को सुलतानगंज के कटहरा ग्राम में हुआ था. वह सेवा निवृत प्रधानाचार्य थे.
अपनी लेखनी से अंगिका में कई खंड काव्य, महाकाव्य व प्रबंध काव्य की रचना की. इनका काव्य खंड पुस्तक उत्तंग हमरो अंग और अंगिका महाकाव्य तिलकामांझी, टीएमबीयू में एमए के पाठ्यक्रम में छात्र पढ़ रहे है. अंगिका में गजल संग्रह, हिंदी संस्मरण, हिंदी काव्य संकलन, हिंदी एकांकी, लोक गाथा पर उपन्यास कुंडलियां व दोहे लिखे. कई सम्मान व पुरस्कार मिले. उन्हें आठ अप्रैल को अजगैवीनाथ साहित्य मंच सुलतानगंज की ओर से उमानाथ पाठक साहित्य स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया था. उनके निधन पर शहर के शिक्षाविद व साहित्कारों में शोक की लहर है. सुलतानगंज मुक्तिधाम में उनका अंतिम संस्कार हुआ.
“अंगदेश” का समस्त समूह उनके निधन से शोकाकुल है. दिसंबर २०२३ में अंगदेश की टीम से भेंट में उन्होंने काफी बातें की थीं और अंगदेश की टीम को उन्होंने अपनी लिखी कुछ पुस्तकें भी भेंट की थीं। उनका जाना सिर्फ अंगदेश या अंगिका साहित्य ही नहीं बल्कि समस्त साहित्य की दुनिया में एक अपूरणीय क्षति है।
शोक व्यक्त करने वालों में किसलय कोमल, सौरभ अतिरेक, ब्रह्म देव नारायण सत्यम, सुधीर कुमार प्रोग्रामर, अंजनी शर्मा, श्यामसुंदर आर्य, भवानंद सिंह, दिलीप कुमार सिंह दीपक, प्रदीप पाल, ब्रह्म देव बंधू, शत्रुघ्न आर्य, मनीष कुमार गूंज, रामस्वरूप मस्ताना, प्राण मोहन प्रीतम, उषा किरण साहा, रौशन भारती, शंकर कुमार राम, अमरेंद्र कुमार, कुणाल कुनीज कनौजिया, साथी सुरेश सूर्य, राजेंद्र प्रसाद मोदी, साथी इंद्र देव, शंभु मंड़ल शामिल हैं.