बाल विवाह – अंगिका कविता – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – Baal Vivaah – Angika Poem – Heera Prasad Harendra

बाल विवाह – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – अंगिका काव्य

हरदम तोरा बुझाबै छिहों, भैया बात सुनो नै डर | जैहों गलती हम्में करलहों , वैहों गलती तोंय नै कर ||

हमरा बापें कहै पढ़ी ले, काम काज कुछ करिहैं तोयं | जुआ पचीसी खेली खेली, धन संपत्ति नै हारिहैं तोयं ||

नै राखलौन समझैलें उनको, झुट्ठे बाप करै चर चर | जैहों गलती हम्में करलहों , वैहों गलती तोंय नै कर ||

हमरा जूती पड़लै देखी, गोस्सा बापो के बरलै | जल्दी बीहा शादी करैके, भूते माथा पर चढ़लै ||

बात मनों के होतो देखि, कथी ल करथों टर टर टर | जैहों गलती हम्में करलहों , वैहों गलती तोंय नै कर ||

चौदह बरस जखैनिए होलै, हो गेलै हमरो शादी | चार महीना में ही गौना, शुरू होलै तब बरबादी ||

पांच बरस में छो ठो बुतरू, कोय पीठी कोय कांखी तर | जैहों गलती हम्में करलहों, वैहों गलती तोंय नै कर ||

ऐना , टिकुली, पावडर लेली, खिच खिच रोजे होतैं छै | गुस्सा सं जे बात बोलै छी, हाथ लोर से धोथैं छै ||

मुहं के मुस्कान मिटैले, बातों में कांपे थर थर | जैहों गलती हम्में करलहों , वैहों गलती तोंय नै कर ||

महंगाई के आलम में…

Read more about बाल विवाह – अंगिका कविता – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – Baal Vivaah – Angika Poem – Heera Prasad Harendra
  • 0

पीवी उल्फत के जाम – अंगिका कविता – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – Pivi Ulfat Ke Jaam – Angika Poem – Heera Prasad Harendra

पीवी उल्फत के जाम, मने-मन सोचै छी,सब आशिक छै बदनाम, मने-मन सोचै छी ।

फूहड़ घासोॅ सें बाग-बगीचा छै भरलोॅ,केना खिलतै गुलफाम, मने-मन सोचै छी ।

घर-घर होलै परचार विदेशी चीजोॅ के,अब होतै की अंजाम, मने-मन सोचै छी ।

कम्बल ओढ़ी जब घी पीवी मोटैलोॅ छोॅ,लागै छोॅ सब सद्दाम, मने-मन सोचै छी ।

बेटी बनलै अभिशाप, दहेजोॅ के चलतें,बेटी सें विधाता बाम, मने-मन सोचै छी ।

छै माल-मवेशी भरलोॅ सड़कोॅ पर पड़लोॅगीद्धो गेलै सुरधाम, मने-मन सोचै छी ।

चन्दन के मोल कहाँ बूझै छै सब ‘हीरा’बेचै लकड़ी के दाम, मने-मन सोचै छी ।

Read more about पीवी उल्फत के जाम – अंगिका कविता – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – Pivi Ulfat Ke Jaam – Angika Poem – Heera Prasad Harendra
  • 0

राधा – वन्दना – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

जयति जय जय राधिका जय, जयति संकट टारिणी।जयति जय वृषभानुबाला जयति जय अघ हारिणी॥

नाम तोरोॅ पाप नाशक, नाश पापोॅ के करोॅ।दुखमयी धरती-धरा के, शीघ्र तों विपदा हरोॅ॥यातना यम के भगाबोॅ, त्रास मेटनहार छोॅ।भक्त हितकारी धरा पर, भक्त के आधार छोॅ॥

मांगलिक हर क्षण बनाबोॅ, आय मंगलकारिणी।जयति जय जय राधिका जय, जयति संकट टारिणी॥

बुद्धि कुछ अहिनों भरोॅ, बीतै समय गुणगान मेॅ।भाव सें भरलोॅ रहै भंडार तन-मन-प्राण में॥अर्चना, अभ्यर्थना, अनुनय-विनय, हियहार छै।पद पखारन लेॅ बहाबै नैन निर्मल धार छै॥

प्राण ‘हीरा’ अब करै उत्सर्ग हे जगतारिणी।जयति जय जय राधिका जय, जयति संकट टारिणी॥

Read more about राधा – वन्दना – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य
  • 0

राधा – अध्याय 9 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

नद्दी नाला गंगा जल सें,मिलथैं मन हर्षाय।गंगा अकुलैलोॅ-बकुलैलोॅ,सागर बीच समाय॥1॥

चानोॅ सें चाननी सुरुज सें,किरण अलग न´् होय।ब्रह्म जीव नै अलग वोहिनाँ,कहै एक सब कोय॥2॥

जड़-चेतन सब्भै के आशा,इष्ट चरण लपटाय।मधुर मिलन सुख सार धरा पर,सगरे सब्भैं गाय॥3॥

ब्रह्मा जीव दोनों छै सुन्ना,सुन्ना सगरे छाय।सुन्ना सें जों निकलै सुन्ना,बचिये सुन्ना जाय॥4॥

एक संात, दोॅसर अनंत फनु,पावै एक्के रूप।सच कहिहौ ई जीव ब्रह्म केॅ,अद्भुत कथा अनूप॥5॥

जीव बिना छै, ब्रह्म अधूरा,ब्रह्म बिना की जीव?बड़का-बड़का महल-अटारी,सबसें नीचें नीव॥6॥

ब्रह्मों छेकै जीवन धारा,वै धारा मेॅ मोॅन।ऊबै-डूबै मतवाला रङ,की संपत, की धोॅन॥7॥

धारा जब उलटै, पाबै छी,सुन्दर राधा नाम।प्रेम जगत् के सर दिखाबै,निष्कलंक, निष्काम॥8॥

राध् धातु संगे अच् प्रत्यय,आरू टाप् मिलाय।राधा पावन प्रेम-पहेली,कान्हा हिये समाय॥9॥

राधा-मोहन छै अविनाशी,रूप, अरूप, स्वरूप।राधा गोरी, श्याम सलोना,मोहन युग्म अनूप॥10॥

कला साथ सोलह धरती पर,मनमोहन अवतार।अभिमानी के मान घ…

Read more about राधा – अध्याय 9 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य
  • 0

राधा – अध्याय 8 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

मोहन जब से छोड़ी गेलै,राधा, गोकुल धाम।तब सें राधा चैन नैं पाबै,कखनूँ सुबहो-शाम॥1॥

वृन्दावन, वंशीवट सूना,सूना यमुना धार।कदमी डारें टँगलोॅ झूला,सब लागै बेकार॥2॥

सदा सुहानोॅ लागै मधुवन,गुंजै मुरली तान।अब राधा-मोहन बिन मधुवन,लागै छै सुनसान॥3॥

रीति रंग सब बदली गेलै,बदलै सदा-बहार।झलकै सगर विषाद जहाँ पर,हरदम हर्ष अपार॥4॥

राधा हौ गोकुल नगरी मेॅ,बैठी ध्यान लगाय।कृष्ण नाम ही जपै निरंतर,कृष्ण नाम ही गाय॥5॥

चललै नारद बनी खबरिया,गोकुल राधा पास।धरी डगरिया छोड़ नगरिया,मन मेॅ हर्ष-हुलास॥6॥

डगर-डगर पर सगर अन्हरिया,सूरज जाय नुकाय।हवा चलै तब हिलै टहनिया,मुखड़ा दै चमकाय॥7॥

पपिहा पिउ-पिउ गाबै पल-पल,कोयल मारै तान।भौंरा के पंखोॅ सें भन-भन,निकलै सुन्दर गान॥8॥

लत्तर भरलोॅ गाछ-गछेली,काँटोॅ पर छै फूल।फूल-फूल पर भौंरा डोलै,खोलै भेद न भूल॥9॥

ढकमोरै आमी के मंजर,गाछे लागै मोर।वै मेॅ छिपलोॅ कखनूँ झलकै,कोयल करिया भौर॥10॥

आहर-पोखर पानी भरलोॅ,सीढ़ी बनलोॅ घाट।कहियो राधा घाटें बैठी,जोहै छेली वाट॥11॥

रा…

Read more about राधा – अध्याय 8 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य
  • 0

राधा – अध्याय 7 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

प्रभु लीलाधारी के लीला,अबेॅ कहौं की भाय।बसै द्वारिकाधीश द्वारिका,सागर बीच बनाय॥1॥

रुक्मिणी, जामवंती आरू,सतभामा के संग।हँसी-खुशी सब समय बिताबै,खूब जमाबै रंग॥2॥

पटरानी के संगें खेलै,चौसर, रास-विलास।छैलोॅ मुद-मंगल सब्भे ठाँ,खूबे हर्ष-हुलास॥3॥

लेकिन राधा मन-मंदिर सें,कभी दूर नै जाय।मोहन बिना अकेली राधा,राधा बिनु यदुराय॥4॥

एक दिनाँ के बात सुनाबौं,कृष्ण द्वारिका धाम।खूबे नाचै, खुशी मनाबै,गाबै राधा नाम॥5॥

रानी, पटरानी सब चौंकै,सुनि कान्हा के बात।घेरै सब्भैं दौड़ी आरू,कसी पकड़ै हाथ॥6॥

हमरा सीनी साथ रहै छी,हर पल आठो याम।कहियो न´् निकलै छौं मूँ सें,हमरा सबके नाम॥7॥

की देखै छोॅ राधा मेॅ तों,गाबै छोॅ गुणगान।सुनियै राधा रानी के गुण,बढ़िया करोॅ बखान॥8॥

सेवा के फल मेवा लागै,हम्हुँ सब जानौं खूब।हमरा बरतै झरकी आरू,तोरा बरथौं हूब॥9॥

राधे कैसें याद करै छोॅ,हमरा सबके बीच।श्याम बतावोॅ बोलै रानी,बंशी मुख सें खीच॥10॥

हाँस्से आरू बोलै कान्हा,ढेर करोॅ नै तंग।जे गाबै छी आबोॅ सब्भैंगाबोॅ हमरा संग॥11॥ Read more about राधा – अध्याय 7 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

  • 0