राधा – अध्याय 9 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

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नद्दी नाला गंगा जल सें,
मिलथैं मन हर्षाय।
गंगा अकुलैलोॅ-बकुलैलोॅ,
सागर बीच समाय॥1॥

चानोॅ सें चाननी सुरुज सें,
किरण अलग न´् होय।
ब्रह्म जीव नै अलग वोहिनाँ,
कहै एक सब कोय॥2॥

जड़-चेतन सब्भै के आशा,
इष्ट चरण लपटाय।
मधुर मिलन सुख सार धरा पर,
सगरे सब्भैं गाय॥3॥

ब्रह्मा जीव दोनों छै सुन्ना,
सुन्ना सगरे छाय।
सुन्ना सें जों निकलै सुन्ना,
बचिये सुन्ना जाय॥4॥

एक संात, दोॅसर अनंत फनु,
पावै एक्के रूप।
सच कहिहौ ई जीव ब्रह्म केॅ,
अद्भुत कथा अनूप॥5॥

जीव बिना छै, ब्रह्म अधूरा,
ब्रह्म बिना की जीव?
बड़का-बड़का महल-अटारी,
सबसें नीचें नीव॥6॥

ब्रह्मों छेकै जीवन धारा,
वै धारा मेॅ मोॅन।
ऊबै-डूबै मतवाला रङ,
की संपत, की धोॅन॥7॥

धारा जब उलटै, पाबै छी,
सुन्दर राधा नाम।
प्रेम जगत् के सर दिखाबै,
निष्कलंक, निष्काम॥8॥

राध् धातु संगे अच् प्रत्यय,
आरू टाप् मिलाय।
राधा पावन प्रेम-पहेली,
कान्हा हिये समाय॥9॥

राधा-मोहन छै अविनाशी,
रूप, अरूप, स्वरूप।
राधा गोरी, श्याम सलोना,
मोहन युग्म अनूप॥10॥

कला साथ सोलह धरती पर,
मनमोहन अवतार।
अभिमानी के मान घटाबै,
जानै जन संसार॥11॥

चोरी, झकझोरी, बरजोरी,
छेड़-डाड़ अपनाय।
झूठ-साँच बोली-बोली झट,
सबटा बात बनाय॥12॥

जादूगर रङ् तंत्र-मंत्र सें,
कलिया दहके नाग।
नाथै जखनी, उगलै भर-भर,
नागा मूँ सें झाग॥13॥

शांति दूत के रूप कखनियों,
कखनूँ दै ललकार।
दौड़ी कखनूँ लाज बचाबै,
कहीं लुटाबै प्यार॥14॥

गीता के उपदेश सुनाबै,
करै धर्म परचार।
मुँह खोली दिखलाबै जौनें,
अन्दर सब संसार॥15॥

रोम-रोम मेॅ ओॅकरा बसलोॅ,
राधा गुण के खान।
बिना एक छै, दोनों आधा,
राधा या भगवान॥16॥

राधा सें फनु अलग कहाँ छै,
घट-घट वासी श्याम।
खैतें-पीतें, सोतें-जगतें,
गाबै राधा नाम॥17॥

दुनिया के मद-मोह तजी सब,
जपोॅ कृष्ण के नाम।
जौनें काटै दुख के फन्दा,
कान्हा, मोहन, श्याम॥18॥

ऋषि-मुनि ज्ञानी, साधु-संत सब,
रहै लगैतें ध्यान।
शेष, महेश, बिरंचि गणेशें,
गाबै छै गुणगान॥19॥

मगर कहाँ ऊ मिलतै जेकरोॅ,
राधा अन्दर वास।
मन-मन्दिर के बन्द कपाटे,
कहीं कहाँ आभास॥20॥

राधा काली, राधा दुर्गा,
राधा गंगा माय।
जौनें मेटै पाप-ताप सब,
ई धरती पर आय॥21॥

पराशक्ति छै राधा रानी,
गुणागरी, गुणखान।
करनें छेलै सही शक्ति के,
मनमोहन पहचान॥22॥

वें की बुझतै अज्ञानी जे,
पड़लै माया कूप।
राधा ऋचा वेद चारो के,
सब देवोॅ के धूप॥23॥

असुर निकंदन, भव भय भंजन,
करै कृष्ण जे काम।
सबसें पहिनें बड़ा प्रेम सें,
लै राधा के नाम॥24॥

राधा हर कामोॅ में हरदम,
करै रहै सहयोग।
कान्हा सें पहिनें राधा के,
नाम जपै छै लोग॥25॥

आंगन के तुलसी छै राधा,
राधा गीत ज्ञान।
मुक्ति-युक्ति सब राधा छेकै,
स्वर्गो के सोपान॥26॥

मुरली केरोॅ छिद्र राधिका,
बंशी केरोॅ तान।
राधा छेकै चक्र सुदर्शन,
ढाहै सकल गुमान॥27॥

कान्हा के धमनी में भरलोॅ,
राधा छेकै रक्त।
रक्त बिना बेजान शरीरो,
कखनूँ कोनों वक्त॥28॥

मर्यादा पुरुषोत्तम छेलै,
रामचन्द्र भगवान।
पर सीता के जीवन झलकै,
हरी-धुरी सुनसान॥29॥

‘तुम पावक मँह करो निवासा’
बोलै प्रभु श्रीराम।
सीता होतोॅ बाधक हमरोॅ,
करतें कोनों काम॥30॥

अग्नि परीक्षा होल्हौ पर न´्,
सीता पर विश्वास।
कोन बहाना बनलै गेलै,
फेनू सें वनवास॥31॥

वन-वन भटकै सीता तखनी,
ठुकराबै जब राम।
दू बालक के जनम वहीं पर,
लव-कुश जकरोॅ नाम॥32॥

अश्वमेघ यज्ञोॅ के घोड़ा,
रोकै दोनों वीर।
भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण खातिर,
होलै टेढ़ोॅ खीर॥33॥

फेरु सें जब ऐलै सीता,
लौटी आपन धाम।
सदाचरण प्रमाण खोजलकै,
पुरुषोत्तम श्री राम॥34॥

सौंसे उमर परीक्षे देतें,
बीतै जीवन हाय!
धीरज केरोॅ बॉध टूटलै,
वैदेही घबड़ाय॥35॥

अन्तिम क्षण सीता कर जोरै,
जीवन सें उकताय।
धरती मैया अपनाँ अन्दर,
लैछै तुरत समाय॥36॥

मगर राधिका हृदय हार बन,
मनमोहन के साथ।
रहै बिचरतें जन्नें-तन्नें,
अद्भुत छेलै बात॥37॥

बड़ा मनोहर, पावन लागै,
नामे ‘राधेश्याम’।
जकरा सुमिरन करतें भागै,
दुख-तकलीफ तमाम॥38॥

राम अकेले पूर्ण भलें हों,
आधा छेलै श्याम।
आधा-आधी राधा छेली,
साथें सुबहो-शाम॥39॥

राधे के ‘रा’ श्याम के ‘म’ केॅ,
दोनों दहो मिलाय।
रामोॅ अहिनों तभिये होतै,
पूर्ण ब्रह्म यदुराय॥40॥

राम चलाबै वाण पढ़ै तब,
हरदम वेदे मंत्र।
वोही बल पर काटै छेलै,
सब्भे टा षड्यंत्र॥41॥

कृष्णोॅ केरोॅ मंत्र-तंत्र सब,
छेलै राधा एक।
जकरा बल पर काटै छेलै,
बाधा-विघ्न अनेक॥42॥

ईश्वर के अवतार कृष्ण कॅे,
जानै छै संसार।
ठीक वही ना राधा छेकै,
पराशक्ति अवतार॥43॥

मूल प्रकृति केरोॅ पन्ना-पन्ना,
करनें छै स्वीकार॥44॥

पाँच स्वरूप प्रकृति आद्या के,
बीचें राधा जान।
हमरोॅ-तोरोॅ बात यहाँ नैं,
गाबै वेद-पुराण॥45॥

धरती पर के पाप-ताप सब,
मेटै राधा नाम।
ध्यान लगैतें, पूरन होतै,
सबके सब्भे काम॥46॥

सर्व कामना पूर्ण करै के,
राधा मेॅ छै शक्ति।
ज्ञानी जन बस अपनाबै छै,
केवल राधा भक्ति॥47॥

दया दृष्टि राधा के पहिनें,
पाबी लेॅ तों भाय।
ठौर-ठौर, कण-कण मेॅ मिलथौं,
यदुनंदन मुस्काय॥48॥

राधा-राधा रटतें-रटतें,
जौनें त्यागै प्राण।
जम केरोॅ फंदा सें पैतै,
वें सगरे परित्राण॥49॥

आबोॅ भैया गाबोॅ सब्भै,
राधा केरोॅ नाम।
सकल मनोरथ पूरा करतै,
क्षण मेॅ राधे-श्याम॥50॥