गंगा के बढ़ते जलस्तर के साथ ही गंगा की सहायक नदी गेरूआ, भैना कोआ, कटरिया सहित कई नदियों में पानी का दवाब काफी बढ़ गया। सहायक नदियों में पानी का दवाब बढ़ते ही पानी उपटकर खेतों में फैलने लगा। खेतों में लगी मक्का, मूंग, मिर्ची इत्यादी की फसलें डूबने लगी। किसानों की मेहनत व पूंजी बर्बाद हो गई। घोघा व आस पास का क्षेत्र प्रकृति की दोहरी मार का दंश झेलने पर मजबुर है। घोघा का खेती किसानी दो हिस्सों में बंटा है उत्तरी हिस्सा दियरा का क्षेत्र तो दक्षिणी हिस्सा बहियार(टिकर) का क्षेत्र। कई किसानों की जमीन दोनो हिस्सों में है जिससे किसानों के समक्ष भारी परेशानी उत्पन्न हो गई है।
कहीं बाढ़ तो कहीं सुखाड़: दक्षिणी हिस्सा में बारिस नहीं होने के कारण सुखाड़ के प्रभाव में है। धान का बीचड़ा सूख गया, लिहाजा धान की रोपणी नहीं हो सकी। वहीं उत्तरी हिस्सा गंगा के बढ़ते जलस्तर के साथ उफनाई सहायक नदियों के तट पर लगी मक्का, मूंग मिर्ची की फसल डूबने लगी जिसे पशुचारा के रूप में प्रयोग में लाई जा रही है।
बीते वर्ष तक बारिस के बाद सहायक नदियां उफनाती थी और पानी गंगा में आकर मिलती, जिससे गंगा का जलस्तर बढ़ने लगता था, लेकिन इस बार गंगा का पानी ही सहायक नदियों को अपने प्रभाव में ले रखा है। गंगा के बढ़ते जलस्तर के साथ सहायक नदियों में उफान आने लगी जिससे किसान व सामान्य लोग प्रभावित होने लगे हैं।