प्रारंभिक जीवन के तैंतीस वर्षों तक अध्ययन और जीविकोपार्जन की दिशा में टैढ़ी मेढ़ी पगडंडियों से गुजरने के बाद भागवती प्रेरणा के फलस्वरूप अप्रत्यासिक रूप से भारती के अर्चना की ओर प्रवृत्त-प्रतिकूल परिस्थितियों में भी असदम्य उत्साह एवं अटूट निष्ठा से साहित्य साध्ना, सन अदम्य उत्साह एवं अटूट निष्ठा से साहित्य साधना,
सन 1921 ई. में प्रथम कृति निर्वासिता का प्रकाशन-अब तक कुल 18 उपन्यास प्राकाशित -मीमांसा नामक उपन्यास का ‘बहुरानी’ नाम से चल चित्रीकरण–रक्त और रंग’ नामक उपन्यास बिहार सरकार द्वारा पुरस्कृत ।
व्यक्तिगत सत्याग्रह में कारावास-असाध्य बात व्याध् िके साथ कारा मुक्ति। वह व्याध् ियथास्थान अब भी अचला राष्ट्रभाषा परिषद् के प्रारंभिक काल से सन 1963 तक प्राकशनाधिकारी के यप में सरकारी सेवा-कैवल्यधम आश्रम, महर्षि रमण आश्रम और विशेषतः श्री अरविन्द आश्रम में अध्यात्मिक जीवन की सुखानुभूति-साहित्य सृजन ही जीवन यात्रा का पाथेय।
श्री अनूप लाल मंडल (स्व.)
जन्म – आश्विन शुक्ल पंचमी 1953 वि.सं., सन् 1896 ई.
जन्म स्थान – समेली (कटिहार)
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औपन्यासिक कृतियों में विभिन्न रचना शिल्पों का सपफल सद्भावन । समाज के बहुरंगी चित्रों का सजीव शिल्पन-जीवनी लेखन की एक नई शैली का प्रवर्तन। बाल साहित्य के अनुभवी रचयिता एवं अनुवाद कला के सर्मज्ञ। नामयश की लिप्सा तथा आत्मज्ञापन की ईप्सा की अपेक्षा आत्मगोपन की प्रकृति-संकोचशील, विनम्र और स्वाध्याय प्रिय व्यक्तित्व ।
तेरासी वर्ष की अवस्था में आदरणीय मंडल जी ने अनुरोध् पर अंगिका में उपन्यास लिखना स्वीकार किया और अल्प अवध् िमें ही उन्हेांने ‘नया सूरज’ नया जाँन’ नामक उपन्यास लिखकर प्रकाशन के लिये भेजा ।
सन् 1191 मे अंगिका का यह उपन्यास शेखर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो गया । अंगिका का यह उपन्यास शेखर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हो गया । अंगिका का यह श्रेष्ठ उपन्यास अंग माधरी में भी धारावाहिक रूप से प्रकाशित हुआ है।
बिहार का प्रेमचन्द कहाने वाले श्री अनूपालन मंडल का स्वर्गवास 21 सितम्बर 1982 ई. को हो गया ।
दिसम्बर 1998 में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् द्वारा परिषद् पत्रिका का ‘‘अनूपलाल मंडल’ अंक प्रकाशित किया गया है। यह शोधपूर्ण आलेखों से भरा अंक बड़ा ही महत्वपूर्ण है।