मोहन मधूवन झूला झूलै,सुनोॅ उधर के बात।अभिमानी कंशासुर काफी,करै रोज उत्पात॥1॥
वासुदेव सेॅ हारी-पारी,वसुदेव संग आय।उलटा-पुल्टा, गरजी-भूकी,खूबे धूम मचाय॥2॥
खिसियैली बिल्ली खंभा केॅ,नोचै जेनाँ आय।वोहिनाँ बौखलाबै कंशो,वसुदेवोॅ लग जाय॥3॥
वासुदेव केॅ खूब सताबै,कंशें हर दिन-रात।उनकोॅ दशा निहारी नारद,बोलै सुन्दर बात॥4॥
कंशराज! कान्हा-बलदाऊ,वसुदेवोॅ के लाल।ऊ दोनों केॅ छोड़ी तोरोॅ,तेसर के छौं काल॥5॥
बिन कसूरी वसुदेव जी पेॅ,बरसै छोॅ दिन-रात।देवकी बहिन के संकट मेॅ,पड़लोॅ छै अहिवात॥6॥
निर्दोष केॅ तकलीफ देना,छै अनुचित, अन्याय।अन्यायी के जन, धन-संपद,राज रसातल जाय॥7॥
नारद बाबा के वाणी सें,कंशो कुछ नरमाय।भेज दूत तब अक्रूरोॅ केॅ,लेलक तुरत बुलाय॥8॥
कंश कहै तब अक्रूरोॅ सें,सोचोॅ कोय उपाय।लानी झट केन्हों कान्हा के,शेखी दहो भुलाय॥9॥
धनुष यज्ञ, मथुरा के शोभा,देखन लेॅ बोलाय।कल-बल-छल सें जेना सपरै,देबै सीख सिखाय॥10॥
पीड़ कुबलिया अपनोॅ लाती,भरता देत बनाय।चाणुर मुष्टिक मुक्खैं-मुक्खैं,कटहर देत पकाय॥11॥<…