राधा – अध्याय 1 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

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नटनागर करूणा के सागर,
मुरलीधर घनश्याम।
नइया पार लगाबै सबके,
जौनें गाबै नाम॥1॥

हर पल हर संकट मेॅ कान्हा,
हेरै सब पर आँख।
ओकरोॅ सुधि बिसारै भल्ले,
जकरा होल्हौं पाँख॥2॥

प्रभु के महिमा बड़ा गजब छै,
इ-टा पार के पाय।
प्राणी छै हौ धन्य जगत् मेॅ
जे नैं नाम भुलाय॥3॥

करै मरै बेरी तक मारिच,
रावण केरोॅ काम।
ताके अंतर प्रेम परेखी,
प्रभु दै अपनोॅ धाम॥4॥

हरिश्चन्द्र अहिनों के सच्चा
उनको पूरै बीध।
ईश कृपा सें तरै अजामिल,
आरू जटायु गीध॥5॥

बड़का-बड़का महा-पातकी,
पहुँचै उनकोॅ धाम।
जे भूल्हौ-चूकौं सें लेलक,
कहियो उनकोॅ नाम॥6॥

भस्मासुर सें डरलोॅ भागै,
भोले सम भगवान।
मोहनियाँ रूपोॅ सेॅ राखै,
शिव-शंकर के मान॥7॥

आँख आंधरोॅ केॅ दै आरू
बैहरोॅ केॅ दै कान।
कोढ़ी केॅ दै सुन्दर काया,
गूँगा सहज जुवान॥8॥

लँगड़ा-लूल्हा दौड़ी-दौड़ी,
होवै पर्वत पार।
राम नाम हर पल सुखकारी,
सब दुख मेटनहार॥9॥

ध्रुव के अहिनों नाबुध बालक,
हरदम हरि गुण गाय।
धु्रवतारा अखनी चमकै छै,
अचल परम पद पाय॥10॥

लाजो राखै दु्रपदसुता के,
कान्हा चीर बढ़ाय।
दुस्सासन के मान मिटाबै,
धन्य-धन्य यदुराय॥11॥

जिनका होल्हों लोभ-मोह-मद,
उनकोॅ नैं कल्याण।
नरक यातना मिलथौं पीछू,
यहूँ कष्ट मेॅ प्राण॥12॥

अहंकार आहार करै छै,
ईश्वर सब लेॅ जान।
जानी-बूझी तइयो कहिनें,
बनलोॅ छोॅ नादान॥13॥

सीता प्रभु केरोॅ न्यारी, छै दीनन हितकारी,
दुक्ख हरै सब्भै केरोॅ जे शरण चल्लोॅ जाय छै।
मेटै तकलीफ दुक्ख, भरै जीवन मेॅ सुख,
हारी-पारी जे प्रभु के गुण दिन-रात गाय छै।
प्रभु केरोॅ छै आहार, सब्मैं जानै अहंकार,
अभिमानी केरोॅ मान क्षण-क्षण मेॅ घटाय छै।
गाबै वेद ओ पुराण, गीता करै छै बखान,
लोग जहिनों करै छै, करनी के फल पाय छै॥14॥

आगू करौं गुण गान, जे छै सब्भे गुण खान,
मोन हमरोॅ हरि के चरणांे मॅे लपटाय छै।
काटौं हर दिन-रात, चरणों मेॅ रही साथ,
तजि काम भजौ नाम, हिया एतनें सोहाय छै।
छेकै पुराणों के बात, सब्भे दुष्टोॅ के जामात,
धरती पर उत्पात आबी-आबी केॅ मचाय छै।
हुन्नें कै जोर-जोर वृषभानु घर शोर,
एक बाला के जनम पर सब्भे गीत गाय छै॥15॥