शहर से करीब चार किलोमीटर दूर गुनिहारी पंचायत के गदागंज (मंडई) स्थित पगली दुर्गा मां का मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। मंदिर का इतिहास करीब 260 साल पुराना है।
उस समय इस गांव की आबादी काफी घनी थी । यह मंडी के नाम से जाना जाता था। एक बार ऐसा हुआ कि गांव में लोग अचानक घातक बीमारी की चपेट में आने लगे । एक के बाद एक कई लोगों की मौत होने लगी। लोग गांव छोड़ने का मन बना चुके थे। हालांकि अचानक रात में गांव के ही एक व्यक्ति को मां ने सपने में कहा कि उक्त स्थान पर मेरी पूजा के लिए बेदी बनाओ और हमारी पूजा धूमधाम से करो । तभी तुम लोगों की बीमारी दूर होगी। दूसरे दिन उस व्यक्ति ने गांव के लोगों को इस संबंध में बताया । ग्रामीणों ने मिलकर मां की बेदी बनाकर पूजा अर्चना शुरू की । इससे बीमारी से ग्रामीणों को छुटकारा मिलने लगा। तब से अब तक मां की अनावृत पूजा की जाती है।
दुर्गा पूजा के नवमी तिथि पर पड़ती है सैकड़ों बली: दुर्गा पूजा की नवमी तिथि पर प्रत्येक वर्ष लगभग 800 से 900 के करीब बली चढ़ती है लोगों के मन के पूरे होने पर लोग बलि चढ़ाते हैं इससे मालूम चलता है कि जो भी व्यक्ति माता को सच्चे दिल से जो भी मांगता है माता उसे पूर्ण करती है।
नवमी तिथि को बलि के दौरान झुकता है माता का सिर: ऐसा मान्यता है कि नवमी तिथि को बलि के दौरान माता का सिर्फ झुक जाता है इसलिए प्रतिमा को जंजीर से बांध दिया जाता है। मंदिर से सटे तालाब में ही होता है माता के प्रतिमा का विसर्जन।
माँ पगली दुर्गा मां मंदिर से सटे तालाब पर ही होता है माता के प्रतिमा का विसर्जन: मंदिर के पुरोहित सपन अवस्थी बताते हैं कि पूर्व में कई बार लोगों द्वारा प्रयास किया गया की प्रतिमा का शहर में भ्रमण कराकर विसर्जन किया जाए, परंतु जब भी प्रयास किया गया कोई ना कोई विघ्न उत्पन्न हो जाने के कारण उक्त तालाब में ही माता के प्रतिमा का विसर्जन कर दिया जाता है।