बुतरु – अंगिका ग़ज़ल – किसलय कोमल | Butru – Angika Ghazal – Kislay Komal

बुतरू कs, पढाय देलकै, बड़ा बनाय देलकै।जिनगी आपनो, इहै मs पूरा, बिताय देलकै।।

जे कमाइने छेलै, लगी-हारी कs, दिन-रात।सब्भै, बुतरू के ममता मs, लुटाय देलकै।।

हमरs नुनू , सब्भै संs छै, दू फलांग आगू।जाने, भगमान, कोन पुन्य के, फsल देलकै।।

बड़ा होय, बुतरू, करतै, बुढ़ाढ़ी मs सेवा।इहै सोची-सोची, जवानी, बुढ़ाय देलकै।।

कत्तो कहै, लोग सिनी, होकरा बारे मेँs।बात, दुनो जीव, हवा में, उड़ाय देलकै।।

बड़ा होथैं, जानें की होलै, भूली गेलै हमरा।आरो, सब लगाव भी, गंगा मs, बहाय देलकै।।

टुकुर-टुकुर ताकै, दिनभर, द्वारी दन्ने।बेरा डुबथैंह, पल्ला, भिडकाय देलकै।।

कमाय के इन्हीं, की देथौं, माय बाप कs।उलटा, पेंशन पs नज़र, गराय देलकै ।।

भाँगलो देहs मs, जान, कैंहैं अखनिहों छै।इहे जानै, बुतरु, ऐला दिन, फ़ोन घुमाय देलकै।।

~ किसलय "कोमल"

दिनांक : १३-दिसंबर-२०२३

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अनूप लाल मंडल | Anup Lal Mandal

स्व. अनूप लाल मंडल बिहार के एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थे, जो नाटक, गद्य और कहानी लेखन में भी अपनी दक्षता का प्रदर्शन किया था। उनकी कहानियों और उपन्यासों में आम जनता के मुद्दों, सामाजिक समस्याओं और मनोवैज्ञानिक विषयों को विस्तृत रूप से व्यक्त किया गया है।

समेली' (मोहल्ला- चकला मोलानगर) शब्द 'मानस-स्क्रीन' पर आते ही एकमात्र नाम बड़ी ईमानदारी से उभरता है, वह है- "अनूपलाल मंडल" (जन्म- माँ दुर्गा की छठी पूजा के दिन, 1896; मृत्यु- 22 सितंबर 1982)। 'परिषद पत्रिका' (वर्ष-35, अंक- 1-4) ने अनूपजी के जीवन-कालानुक्रम को प्रकाशित की है, इस शोध-पत्रिका के अनुसार-- आरम्भिक शिक्षा चकला-मोलानागर में ही । मात्र 10 वर्ष की अवस्था में प्रथम शादी, पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरी शादी 16 वर्ष की आयु में सुधा से । तीसरी शादी 27 वर्ष की उम्र में मूर्ति देवी से । सन 1911 में गाँव के उसी विद्यालय में प्रधानाध्यापक नियुक्त, जहाँ उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण किये थे । बाद में शिक्षक-प्रशिक्षण 1914 में सब्दलपुर (पूर्णिया) से प्राप्त किये । प्राथमिक और मध्य विद्यालयों से होते हुए 1922 में बे…

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बाल विवाह – अंगिका कविता – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – Baal Vivaah – Angika Poem – Heera Prasad Harendra

बाल विवाह – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – अंगिका काव्य

हरदम तोरा बुझाबै छिहों, भैया बात सुनो नै डर | जैहों गलती हम्में करलहों , वैहों गलती तोंय नै कर ||

हमरा बापें कहै पढ़ी ले, काम काज कुछ करिहैं तोयं | जुआ पचीसी खेली खेली, धन संपत्ति नै हारिहैं तोयं ||

नै राखलौन समझैलें उनको, झुट्ठे बाप करै चर चर | जैहों गलती हम्में करलहों , वैहों गलती तोंय नै कर ||

हमरा जूती पड़लै देखी, गोस्सा बापो के बरलै | जल्दी बीहा शादी करैके, भूते माथा पर चढ़लै ||

बात मनों के होतो देखि, कथी ल करथों टर टर टर | जैहों गलती हम्में करलहों , वैहों गलती तोंय नै कर ||

चौदह बरस जखैनिए होलै, हो गेलै हमरो शादी | चार महीना में ही गौना, शुरू होलै तब बरबादी ||

पांच बरस में छो ठो बुतरू, कोय पीठी कोय कांखी तर | जैहों गलती हम्में करलहों, वैहों गलती तोंय नै कर ||

ऐना , टिकुली, पावडर लेली, खिच खिच रोजे होतैं छै | गुस्सा सं जे बात बोलै छी, हाथ लोर से धोथैं छै ||

मुहं के मुस्कान मिटैले, बातों में कांपे थर थर | जैहों गलती हम्में करलहों , वैहों गलती तोंय नै कर ||

महंगाई के आलम में…

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हमरोॅ गाँव – अंगिका कविता – डॉ. परमानन्द पाण्डेय

हमरोॅ सुन्दर गाँव हो, रामपुर भगमान हो !

भागलपुर सें तीन कोस दक्खिन आ पूरब जानेंगोनू बाबाधाम सें पूरब पौने कोस बखानेंउत्तर हिरा भड़ोखर सटले दोनों एक समान हो ।हमरोॅ सुन्दर गाँव हो, रामपुर भगमान हो !

जेकरोॅ गरदाँ-धुरदाँ लोटलाँ, जहाँ बितैलाँ बचपनजेकरोॅ खेत, नदी, बगिया में रमलोॅ छै हमरोॅ मनजे माटी रोॅ रस में भिजलोॅ हमरोॅ तन-मन-प्रान हो ।हमरोॅ सुन्दर गाँव हो, रामपुर भगमान हो !

छेली हमरी माय वैष्णवी किरतन-भजन सिखैलकीसुख-दुख सहि पोसी-पाली केॅ हमरा बड़ोॅ बनैलकीधरमी माता सीता देवी, वरण-कमल में ध्यान हो ।हमरोॅ सुन्दर गाँव हो, रामपुर भगमान हो !

क्रान्तिकारी पिताजी चुनचुन पाँड़े नाम उजागरनाग घोष के साथी जे, अङरेज डरै जिनकोॅ डरईस-देश-साहित्य-प्रेम उपजैलथिन पिता महान हो ।हमरोॅ सुन्दर गाँव हो, रामपुर भगमान हो !

दीदी बड़ी सुदामा देवी श्यामा बहिन दुलारीसरोसती-लक्ष्मी रङ दोनों नैहर-सासुर प्यारीदोनों असमय विदा लेलकी गेली देश बिरान हो ।हमरोॅ सुन्दर गाँव हो, रामपुर भगमान हो !

भैया पंडित नन्द सच्चिदा जिनकोॅ …

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डॉ. परमानन्द पाण्डेय – Dr. Permanand Pandey

Dr. Parmanand Pandey is called the father of Angika.

Dr. Parmanand Pandey was a poet. He crafted Angika the way a jeweler crafts a diamond. His creative personality has mesmerized many readers and his fellow language scientists. It is only because of his efforts that Angika language is now taught in the post-graduation program in Tilkamanjhi Bhagalpur University.

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डॉ. परमानंद पांडे

जन्म : 18 दिसंबर, 1919, भागलपुर

डॉ. परमानन्द पांडेय की रचनाएँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

He worked on Angika grammar, spelling, comparative study of Angika and Bhojpuri and interrelation between Angika and Hindi. He had published a handwritten Magazine ‘Chaanan’ in A…

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डॉ. अमरेन्द्र – Dr. Amarendra

हिन्दी और अंगिका में विपुल साहित्य के सर्जक डॉ. अमरेन्द्र का जन्म, बिहार के पुराने जिले भागलपुर के बाँका अनुमंडल (अब जिला) के रजौन थानान्तर्गत, पौराणिक नदी चानन नदी के पूर्वी छोर पर बसा रुपसा (रूपसार) गाँव में पाँच जनवरी उन्नीस सौ उनचास ई. में  हुआ । अपने पिता के बाहरी और आन्तरिक व्यक्तित्व से संपन्न, इन्होंने आरंभ में तो सवैया और कवित्त छंदों में काव्य-सर्जना आरंभ की, लेकिन बाद में उर्दू शैली से प्रभावित होकर देवनागरी में भरपूर ग़ज़लें कहीं, और नज़्में भी । यह क्रम काँग्रेस-काल में आपात-काल की घोषणा से लेकर सन दो हजार पाँच ई. के आसपास तक जारी रहा । बाद में इन्होंने अपनी सृजनशीलता के वेग को, जनपदीय आन्दोलन से प्रभावित होकर, अपनी मातृभाषा के संपूर्ण विकास की ओर मोड़ दिया और इस तरह अपने सर्जक व्यक्तित्व को राष्ट्रभाषा के साथ-साथ मातृभाषा की सेवा में समर्पित कर दिया, जो आज भी उसी रूप में अडिग है ।

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हीरा प्रसाद “हरेन्द्र” – Heera Prasad “Harendra”

अंगिका के महाकवि आरो अवकाश प्राप्त कुशल प्रधानाचार्य श्री हीरा प्रसाद हरेंद्र जी के जन्म ६ सितम्बर १९५० क भागलपुर (बिहार) के सुल्तानगंज प्रखंड अंतर्गत कटहरा मेँ होलै | हिनी शिक्षण करते हुए लगातार अंगिका भाषा के सेवा में लागलौ रहलै | हिनको पहिलो अंगिका काव्य संकलन "उत्तंग हमरो अंग" प्रकाशित होलै आरो तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल होलै तहिया से आय तक नौ (९) महत्वपूर्ण प्रबंध काव्य कृति प्रकाशित होलै |

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पीवी उल्फत के जाम – अंगिका कविता – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र – Pivi Ulfat Ke Jaam – Angika Poem – Heera Prasad Harendra

पीवी उल्फत के जाम, मने-मन सोचै छी,सब आशिक छै बदनाम, मने-मन सोचै छी ।

फूहड़ घासोॅ सें बाग-बगीचा छै भरलोॅ,केना खिलतै गुलफाम, मने-मन सोचै छी ।

घर-घर होलै परचार विदेशी चीजोॅ के,अब होतै की अंजाम, मने-मन सोचै छी ।

कम्बल ओढ़ी जब घी पीवी मोटैलोॅ छोॅ,लागै छोॅ सब सद्दाम, मने-मन सोचै छी ।

बेटी बनलै अभिशाप, दहेजोॅ के चलतें,बेटी सें विधाता बाम, मने-मन सोचै छी ।

छै माल-मवेशी भरलोॅ सड़कोॅ पर पड़लोॅगीद्धो गेलै सुरधाम, मने-मन सोचै छी ।

चन्दन के मोल कहाँ बूझै छै सब ‘हीरा’बेचै लकड़ी के दाम, मने-मन सोचै छी ।

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राधा – वन्दना – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

जयति जय जय राधिका जय, जयति संकट टारिणी।जयति जय वृषभानुबाला जयति जय अघ हारिणी॥

नाम तोरोॅ पाप नाशक, नाश पापोॅ के करोॅ।दुखमयी धरती-धरा के, शीघ्र तों विपदा हरोॅ॥यातना यम के भगाबोॅ, त्रास मेटनहार छोॅ।भक्त हितकारी धरा पर, भक्त के आधार छोॅ॥

मांगलिक हर क्षण बनाबोॅ, आय मंगलकारिणी।जयति जय जय राधिका जय, जयति संकट टारिणी॥

बुद्धि कुछ अहिनों भरोॅ, बीतै समय गुणगान मेॅ।भाव सें भरलोॅ रहै भंडार तन-मन-प्राण में॥अर्चना, अभ्यर्थना, अनुनय-विनय, हियहार छै।पद पखारन लेॅ बहाबै नैन निर्मल धार छै॥

प्राण ‘हीरा’ अब करै उत्सर्ग हे जगतारिणी।जयति जय जय राधिका जय, जयति संकट टारिणी॥

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राधा – अध्याय 9 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

नद्दी नाला गंगा जल सें,मिलथैं मन हर्षाय।गंगा अकुलैलोॅ-बकुलैलोॅ,सागर बीच समाय॥1॥

चानोॅ सें चाननी सुरुज सें,किरण अलग न´् होय।ब्रह्म जीव नै अलग वोहिनाँ,कहै एक सब कोय॥2॥

जड़-चेतन सब्भै के आशा,इष्ट चरण लपटाय।मधुर मिलन सुख सार धरा पर,सगरे सब्भैं गाय॥3॥

ब्रह्मा जीव दोनों छै सुन्ना,सुन्ना सगरे छाय।सुन्ना सें जों निकलै सुन्ना,बचिये सुन्ना जाय॥4॥

एक संात, दोॅसर अनंत फनु,पावै एक्के रूप।सच कहिहौ ई जीव ब्रह्म केॅ,अद्भुत कथा अनूप॥5॥

जीव बिना छै, ब्रह्म अधूरा,ब्रह्म बिना की जीव?बड़का-बड़का महल-अटारी,सबसें नीचें नीव॥6॥

ब्रह्मों छेकै जीवन धारा,वै धारा मेॅ मोॅन।ऊबै-डूबै मतवाला रङ,की संपत, की धोॅन॥7॥

धारा जब उलटै, पाबै छी,सुन्दर राधा नाम।प्रेम जगत् के सर दिखाबै,निष्कलंक, निष्काम॥8॥

राध् धातु संगे अच् प्रत्यय,आरू टाप् मिलाय।राधा पावन प्रेम-पहेली,कान्हा हिये समाय॥9॥

राधा-मोहन छै अविनाशी,रूप, अरूप, स्वरूप।राधा गोरी, श्याम सलोना,मोहन युग्म अनूप॥10॥

कला साथ सोलह धरती पर,मनमोहन अवतार।अभिमानी के मान घ…

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राधा – अध्याय 8 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

मोहन जब से छोड़ी गेलै,राधा, गोकुल धाम।तब सें राधा चैन नैं पाबै,कखनूँ सुबहो-शाम॥1॥

वृन्दावन, वंशीवट सूना,सूना यमुना धार।कदमी डारें टँगलोॅ झूला,सब लागै बेकार॥2॥

सदा सुहानोॅ लागै मधुवन,गुंजै मुरली तान।अब राधा-मोहन बिन मधुवन,लागै छै सुनसान॥3॥

रीति रंग सब बदली गेलै,बदलै सदा-बहार।झलकै सगर विषाद जहाँ पर,हरदम हर्ष अपार॥4॥

राधा हौ गोकुल नगरी मेॅ,बैठी ध्यान लगाय।कृष्ण नाम ही जपै निरंतर,कृष्ण नाम ही गाय॥5॥

चललै नारद बनी खबरिया,गोकुल राधा पास।धरी डगरिया छोड़ नगरिया,मन मेॅ हर्ष-हुलास॥6॥

डगर-डगर पर सगर अन्हरिया,सूरज जाय नुकाय।हवा चलै तब हिलै टहनिया,मुखड़ा दै चमकाय॥7॥

पपिहा पिउ-पिउ गाबै पल-पल,कोयल मारै तान।भौंरा के पंखोॅ सें भन-भन,निकलै सुन्दर गान॥8॥

लत्तर भरलोॅ गाछ-गछेली,काँटोॅ पर छै फूल।फूल-फूल पर भौंरा डोलै,खोलै भेद न भूल॥9॥

ढकमोरै आमी के मंजर,गाछे लागै मोर।वै मेॅ छिपलोॅ कखनूँ झलकै,कोयल करिया भौर॥10॥

आहर-पोखर पानी भरलोॅ,सीढ़ी बनलोॅ घाट।कहियो राधा घाटें बैठी,जोहै छेली वाट॥11॥

रा…

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राधा – अध्याय 7 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

प्रभु लीलाधारी के लीला,अबेॅ कहौं की भाय।बसै द्वारिकाधीश द्वारिका,सागर बीच बनाय॥1॥

रुक्मिणी, जामवंती आरू,सतभामा के संग।हँसी-खुशी सब समय बिताबै,खूब जमाबै रंग॥2॥

पटरानी के संगें खेलै,चौसर, रास-विलास।छैलोॅ मुद-मंगल सब्भे ठाँ,खूबे हर्ष-हुलास॥3॥

लेकिन राधा मन-मंदिर सें,कभी दूर नै जाय।मोहन बिना अकेली राधा,राधा बिनु यदुराय॥4॥

एक दिनाँ के बात सुनाबौं,कृष्ण द्वारिका धाम।खूबे नाचै, खुशी मनाबै,गाबै राधा नाम॥5॥

रानी, पटरानी सब चौंकै,सुनि कान्हा के बात।घेरै सब्भैं दौड़ी आरू,कसी पकड़ै हाथ॥6॥

हमरा सीनी साथ रहै छी,हर पल आठो याम।कहियो न´् निकलै छौं मूँ सें,हमरा सबके नाम॥7॥

की देखै छोॅ राधा मेॅ तों,गाबै छोॅ गुणगान।सुनियै राधा रानी के गुण,बढ़िया करोॅ बखान॥8॥

सेवा के फल मेवा लागै,हम्हुँ सब जानौं खूब।हमरा बरतै झरकी आरू,तोरा बरथौं हूब॥9॥

राधे कैसें याद करै छोॅ,हमरा सबके बीच।श्याम बतावोॅ बोलै रानी,बंशी मुख सें खीच॥10॥

हाँस्से आरू बोलै कान्हा,ढेर करोॅ नै तंग।जे गाबै छी आबोॅ सब्भैंगाबोॅ हमरा संग॥11॥ Read more about राधा – अध्याय 7 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

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राधा – अध्याय 6 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

राधा-मोहन कथा-कहानी,जतना कहलोॅ जाय।सब लागै छै थोड़े टानी,मनमाँ कहाँ अघाय॥1॥

सब्भे सखियन बेचैनी सें,खोजै बहुत उपाय।केना रोकौं मनमोहन केॅ,जैतें मथुरा आय॥2॥

जखनी मोहन मथुरा चललै,छोड़ी गोकुल धाम।कोय सखी पहिया तर बैठै,पकड़ै कोय लगाम॥3॥

राधा तड़पेॅ समझ जुदाई,खूब बहाबै लोर।मत जा कान्हा, मत जा कान्हा,खूब मचाबै शोर॥4॥

प्राण बिना जेना तन सूना,चन्दा बिना चकोर।कोयल बिना बसन्त अधूरा,श्यामल घन बिन मोर॥5॥

मणि बिनु मणियर जीव विकल ज्यों,जल बिन विह्वल मीन।कुंज गली, यमुना तट, राधा,मनमोहन बिन दीन॥6॥

पंख कटलका पक्षी नाक्ती,राधा अति लाचार।मनमोहन बिन सूना-सूना,लागै जग-संसार॥7॥

सौ-सौ वादा करलक मोहन,खैलक किरिया ढेर।लौटी ऐबै जल्दी मानोॅ,कहाँ लगैबै देर॥8॥

बढ़लोॅ आगू बड़ी कठिन सेॅ,रथ समझाय-बुझाय।मंत्र मोहनी मनमोहन के,दै छै भूत भगाय॥9॥

तब सें राधा कृष्ण याद मेॅ,जपे कृष्ण के नाम।वृन्दावन के रास रचइया,जय-जय हे सुखधाम॥10॥

कंशराज मथुरा नगरी के,रस्ता मोंन लुभाय।कृष्ण चन्द्र बलदाऊ दोनों,खूब चलै अगुआय॥11॥

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राधा – अध्याय 5 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

अक्रूरे कंशोॅ के खिस्सा,सब्भै बीच सुनाय।कान्हा-बलदाऊ बात सुनी,मन्द-मन्द मुस्काय॥1॥सोचै कान्हा कंश राज के,आबी गेलै काल।ठीक जल्दी होतै ओकरोॅ,हाल बड़ी बेहाल॥2॥नन्द बाबा करिये देलकै,यही बीच एलान।धनुष यज्ञ, मथुरा के शोभा,निरखन करेॅ पयान॥3॥बाबा के एलान सुनी सब,मथुरा वाली बात।गोपियन सब मुरझाई गिरै,अँखियन मेॅ बरसात॥4॥बितलोॅ कथा-कहानी सोचेॅ,कृष्णोॅ के मुस्कान।तन श्यामल घन, चंचल चितवनबाँसुरिया के तान॥5॥वृन्दावन के रास रचलका,घुँघरैलोॅ ऊ बाल।सखियन सब पर वाण चलाबै,मनमोहन के चाल॥6॥कोय तेॅ अक्रूर पेॅ बरसै,गाली दै दू-चार।बड़ा दुष्ट तों हमरा सबकेॅ,देल्हो कष्ट अपार॥7॥क्रूर तोंय, अक्रूर कहाँ सें,नाम रखलखौं माय।दोसरा के दरद की बुझभेॅजे बोलोॅ चिकनाय॥8॥छै अक्रूर कहा निर्मोही,सुन्दर बात बनाय।बाबा केॅ यें मोही लेलक,अब की करबोॅ दाय॥9॥दोष तोरोॅ छौं हे बिधाता!अक्रूर बनी आय।तोहीं कान्हा प्रेम-पाश सें,छोॅ रहलोॅ बिलगाय॥10॥एगो बात विचित्र सखी छै,मनमोहन चितचोर।कखनू नैं ताकै हमरा सब,लागै बड़ी कठोर॥11॥मन देखै छी जाई कान्हा,घुरतै मथुरा हाट।ई छलिया केॅ प्रेम करै के,लागी गेलै चाट॥12॥सब्भैं बूढ़ें बापें, दादा,क…

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राधा – अध्याय 4 – हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’ – अंगिका काव्य

मोहन मधूवन झूला झूलै,सुनोॅ उधर के बात।अभिमानी कंशासुर काफी,करै रोज उत्पात॥1॥

वासुदेव सेॅ हारी-पारी,वसुदेव संग आय।उलटा-पुल्टा, गरजी-भूकी,खूबे धूम मचाय॥2॥

खिसियैली बिल्ली खंभा केॅ,नोचै जेनाँ आय।वोहिनाँ बौखलाबै कंशो,वसुदेवोॅ लग जाय॥3॥

वासुदेव केॅ खूब सताबै,कंशें हर दिन-रात।उनकोॅ दशा निहारी नारद,बोलै सुन्दर बात॥4॥

कंशराज! कान्हा-बलदाऊ,वसुदेवोॅ के लाल।ऊ दोनों केॅ छोड़ी तोरोॅ,तेसर के छौं काल॥5॥

बिन कसूरी वसुदेव जी पेॅ,बरसै छोॅ दिन-रात।देवकी बहिन के संकट मेॅ,पड़लोॅ छै अहिवात॥6॥

निर्दोष केॅ तकलीफ देना,छै अनुचित, अन्याय।अन्यायी के जन, धन-संपद,राज रसातल जाय॥7॥

नारद बाबा के वाणी सें,कंशो कुछ नरमाय।भेज दूत तब अक्रूरोॅ केॅ,लेलक तुरत बुलाय॥8॥

कंश कहै तब अक्रूरोॅ सें,सोचोॅ कोय उपाय।लानी झट केन्हों कान्हा के,शेखी दहो भुलाय॥9॥

धनुष यज्ञ, मथुरा के शोभा,देखन लेॅ बोलाय।कल-बल-छल सें जेना सपरै,देबै सीख सिखाय॥10॥

पीड़ कुबलिया अपनोॅ लाती,भरता देत बनाय।चाणुर मुष्टिक मुक्खैं-मुक्खैं,कटहर देत पकाय॥11॥<…

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