देवोदह झरना, जमुई (Devodah Waterfall) – Jamui

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देवोदह झरना, Jamui

प्राकृतिक धरोहर के रूप चर्चित जमुई जिले के भीमबांध और सिमुलतला के जंगलों में जलप्रपात का मनोरम दृश्य देखने को मिल जाते हैं, लेकिन इससे इतर सिकंदरा से दक्षिण ईंटासगर जंगल में स्थित देवोदह झरना (जलप्रपात) बिहार के कश्मीर के रूप में विख्यात ककोलत जलप्रपात की तरह प्रकृति का सुंदर नमूना बना है।

जंगलों से बहकर आने वाले कल-कल ध्वनि और घने वृक्षों की लंबी श्रृंखला से सजी सुरम्य वादियां सहित लगभग तीन से चार प्राकृतिक जलप्रपात क्षेत्र में देखने को मिल जाते हैं। यहां पहुंचकर मन में खूबसूरत प्राकृतिक सौंदर्य की एक नई उमंग पैदा हो जाती है। पर्यटन स्थलों से हटकर यह जलप्रपात ऐसे हैं जो बारिश के समय खिल उठते हैं। झरने के दोनों तरफ घने जंगल का नजारा के साथ गुनहला पहाड़, झाली पहाड़ से 50 फीट ऊंचाई से गिरते जल का सौंदर्य देखते ही बनता है। यहां इन दिनों आसपास के लोग बड़ी संख्या में पहुंचकर प्रकृति का आनंद उठा रहे हैं।

प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती देवोदह झरना जैन सैलानियों को भी लुभायेगा। दरअसल, अपने ईष्टदेव भगवान महावीर के दर्शन पूजन को लेकर देश ही नहीं, अपितु विदेशों से भी जैन सैलानियों का आना-जाना लगा रहता है जिनका ठहराव लछुआड़ जैन धर्मशाला में ही रहता है। लछुआड़ से ईंटासागर देवोदह जलप्रपात की दूरी महज सात किमी है। ऐसे में जलप्रपात तक सुलभ और सुंदर रास्ते बनने पर जैन सैलानी पहुंचकर प्रकृति का आनंद उठाएंगे।

बारिश के अलावा गर्मी में भी बहता है झरने से पानीसिकंदरा प्रखण्ड मुख्यालय से 15 किमी दूर ईंटासागर जंगल के बीच प्राकृतिक की गोद में समाया देवोदह जलप्रपात है। यहां बारिश के अलावा गर्मी में भी यह झरना लगातार गिरता रहता है और यहां आसपास के दर्जनों गांव से प्राकृतिक प्रेमी झरने का आनंद लेने के साथ देखने आते हैं। अनेकों वर्षों से खासकर जाड़े के दिनों में दर्जनों से अधिक गांव के लोग पिकनिक मनाने जाते रहे हैं लेकिन कालांतर में नक्सलियों के बढ़ते आवागमन के बीच लोगों के आवागमन में कमी आ गई परंतु फिर से आसपास के गांव के लोगों के पहुंचने से देवोदह झरना गुलजार हो उठा है।

ईंटासागर गांव से दक्षिण तीन किमी की दूरी परप्रकृति की गोद में बसा देवोदह झरना है, जहां प्राकृतिक जलप्रपात के जीवंत दृश्य के गहरे रहस्यों के साथ जड़ी-बूटियों का भी पता चलता है। खासबात यह है कि इसके आसपास नीलगाय, हिरण, रीछ, मोर, खरगोश जैसे वन्य प्राणी भी विचरण करते हैं। चट्टानों में पुरातन काल की भित्ति चित्र भी बने हुए हैं।