सुता एक वृषभानु घरोॅ मेॅ,सुन्दर परम अनूप।चम्पकवर्णी, गोरी-गारी,रहै मनोहर रूप॥1॥
ऐथै दुख-तकलीफा भागलै,छैलै हर्ष अपार।बढ़ै रुहानी गाँव घरोॅ के,लगै गाँव गुलजार॥2॥
जकरा धरती पर ऐला सें,छैलै खुशी तमाम।माय-बाप सब सोची-सोचीराखै ‘राधा’ नाम॥3॥
राधा घर ऐंगन मेॅ नाची,सबके मन लोभाय।हुन्नें बाबा नंद ऐंगना,कान्हा धूम मचाय॥4॥
डेगा-डेगी भागी-भागी,नाचै गाबी गीत।स्वर्ग धरा पर उतरी ऐलै,लागै मन परतीत॥5॥
हिन्नें मोहन, हुन्नें राधा,दोनों सुख के खान।नाचै, काबै, दौड़ी-धूपी,आँगन, घोॅर, बथान॥6॥
घूमै घर-घर जाय, दुलारी राधा रानी।झगड़ा कखनूॅ मेल, करै सगरे मनमानी॥बढ़लै जल्दी ढेर, सयानी लागेॅ लगलै।माय हिया अरमान, देखी केॅ जागेॅ लगलै॥7॥
राधा के परिवार, बिहा के सगुण उचारै।बाबा जी के बात, वहाँ पर मोॅन बिचारै॥मन-मन सोचै माय, देखताँ कोनों लड़का।शादी मेॅ अरमान पुरैबै बड़का-बड़का॥8॥
जहाँ चाह छै राह वहाँ पर सगरे मिलतै।सही लगन जों पास, विघ्न-बाधा सब हिलतै॥लोग कहै रायान नामके लड़का छेलै।जकरा संगे ब्याह, तुरत राधा के होलै॥9॥
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