मोहन जब से छोड़ी गेलै,राधा, गोकुल धाम।तब सें राधा चैन नैं पाबै,कखनूँ सुबहो-शाम॥1॥
वृन्दावन, वंशीवट सूना,सूना यमुना धार।कदमी डारें टँगलोॅ झूला,सब लागै बेकार॥2॥
सदा सुहानोॅ लागै मधुवन,गुंजै मुरली तान।अब राधा-मोहन बिन मधुवन,लागै छै सुनसान॥3॥
रीति रंग सब बदली गेलै,बदलै सदा-बहार।झलकै सगर विषाद जहाँ पर,हरदम हर्ष अपार॥4॥
राधा हौ गोकुल नगरी मेॅ,बैठी ध्यान लगाय।कृष्ण नाम ही जपै निरंतर,कृष्ण नाम ही गाय॥5॥
चललै नारद बनी खबरिया,गोकुल राधा पास।धरी डगरिया छोड़ नगरिया,मन मेॅ हर्ष-हुलास॥6॥
डगर-डगर पर सगर अन्हरिया,सूरज जाय नुकाय।हवा चलै तब हिलै टहनिया,मुखड़ा दै चमकाय॥7॥
पपिहा पिउ-पिउ गाबै पल-पल,कोयल मारै तान।भौंरा के पंखोॅ सें भन-भन,निकलै सुन्दर गान॥8॥
लत्तर भरलोॅ गाछ-गछेली,काँटोॅ पर छै फूल।फूल-फूल पर भौंरा डोलै,खोलै भेद न भूल॥9॥
ढकमोरै आमी के मंजर,गाछे लागै मोर।वै मेॅ छिपलोॅ कखनूँ झलकै,कोयल करिया भौर॥10॥
आहर-पोखर पानी भरलोॅ,सीढ़ी बनलोॅ घाट।कहियो राधा घाटें बैठी,जोहै छेली वाट॥11॥
रा…